Starlink: अब भारत में भी शुरू होगी एलन मस्क की सैटेलाइट इंटरनेट सेवा
Starlink – दुनिया के सबसे अमीर और चर्चित उद्योगपति एलन मस्क की कंपनी Starlink अब भारत में भी अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार है। तीन साल के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार Starlink को भारत सरकार से आधिकारिक लाइसेंस मिल गया है। यह कंपनी सैटेलाइट के ज़रिए इंटरनेट सेवा देती है, जो खासकर उन इलाकों के लिए बेहद उपयोगी है जहां अब तक ब्रॉडबैंड या 4G-5G नेटवर्क की पहुंच नहीं हो पाई है।
इस लेख में हम आपको Starlink क्या है, यह कैसे काम करता है, भारत में इसे लाइसेंस कैसे मिला, इसकी सेवाएं कैसे अलग हैं, और आम लोगों को इससे क्या फायदा हो सकता है—इन सभी पहलुओं को आसान भाषा में समझाएंगे।
स्टारलिंक, एलन मस्क की स्पेस कंपनी SpaceX की एक ब्रांच है जो सैटेलाइट के ज़रिए इंटरनेट सेवा देती है। अब तक Starlink ने पृथ्वी की कक्षा में लगभग 7,000 से ज़्यादा सैटेलाइट्स तैनात किए हैं, जो धरती पर कहीं भी इंटरनेट कनेक्शन पहुंचाने में सक्षम हैं। यह टेक्नोलॉजी खासतौर पर दूर-दराज़, पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में बहुत मददगार होती है।
स्टारलिंक एक तरह का satellite-based broadband है। जहां हमारे घरों में इंटरनेट के लिए ऑप्टिकल फाइबर या मोबाइल टावर का इस्तेमाल होता है, वहीं Starlink ऊपर आसमान में तैनात सैटेलाइट्स से सिग्नल भेजता है।
आपको बस एक छोटी सी डिश एंटेना और एक वाई-फाई राउटर की जरूरत होती है। ये एंटेना सीधे Starlink सैटेलाइट्स से सिग्नल लेता है और उसे आपके डिवाइस तक पहुंचाता है। इसमें न तो तारों की ज़रूरत होती है और न ही मोबाइल टावर की।
स्टारलिंक ने लगभग तीन साल पहले भारत में लाइसेंस के लिए आवेदन किया था, लेकिन कई सरकारी जांच-पड़ताल और सुरक्षा से जुड़े पहलुओं के चलते इसे मंजूरी मिलने में देरी हुई। अब भारत सरकार ने सभी पहलुओं की जांच करने के बाद GMPCS लाइसेंस (Global Mobile Personal Communication by Satellite) दे दिया है।
इससे पहले भारत में दो ही कंपनियों को यह लाइसेंस मिला था—OneWeb (Eutelsat की कंपनी) और Reliance Jio। अब Starlink तीसरी कंपनी बन गई है जिसे भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवा देने की इजाज़त है।
स्टारलिंक को लाइसेंस मिलने से भारत में एक नई प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है। Reliance Jio और Bharti Airtel जैसी टेलीकॉम कंपनियां भी अब सैटेलाइट इंटरनेट की दिशा में काम कर रही हैं। Starlink का मानना है कि सरकार को इस सेवा के लिए स्पेक्ट्रम (frequencies) का सीधा आवंटन (administrative allocation) करना चाहिए, जबकि Jio चाहती है कि इसे नीलामी (auction) के ज़रिए दिया जाए।
सरकार ने स्टारलिंक के पक्ष में फैसला किया और administrative allocation का रास्ता चुना, क्योंकि सैटेलाइट कम्युनिकेशन का स्पेक्ट्रम सीमित और साझा (shared) होता है, जिसे नीलाम करना मुश्किल है।
स्टारलिंक की सेवा अभी शुरुआती दौर में थोड़ी महंगी हो सकती है, इसलिए यह शहरी और संपन्न वर्ग के लिए अधिक आकर्षक हो सकती है। लेकिन इसका असली फायदा ग्रामीण, पहाड़ी और दूरदराज़ के इलाकों को मिलेगा, जहां अभी तक अच्छी इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं पहुंच पाई है।
जैसे:
भारत सरकार ने स्टारलिंक और बाकी सैटकॉम कंपनियों के लिए कुछ खास नियम भी बनाए हैं:
इन सभी नियमों का मकसद भारत की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है।
स्टारलिंक की सेवा की कीमत अभी तय नहीं की गई है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह सेवा लगभग ₹7,000–₹8,000 प्रति माह के आसपास होती है। इसके साथ ₹40,000–₹50,000 का एक बार का स्टारलिंक किट भी खरीदना पड़ता है जिसमें एंटेना और राउटर होता है।
भारत में कंपनी की कोशिश होगी कि वह इसे थोड़ा सस्ता कर के पेश करे, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ सकें।
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Starlink एक नवीन और शक्तिशाली टेक्नोलॉजी है जो भारत के डिजिटल विकास में एक बड़ा योगदान दे सकती है। खासकर उन इलाकों में जहां आज भी लोग इंटरनेट के लिए जूझ रहे हैं, वहां Starlink नई उम्मीद बनकर उभर सकता है।
अगर कंपनी ने भारत सरकार के नियमों का पालन किया और सेवाएं सस्ती रखीं, तो यह आने वाले समय में भारत के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में क्रांति ला सकती है।
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